Wednesday 16 November 2016

Aye Nadi


ऐ नदी 

थिरकती, बलखाती तुम गांव गांव फिरती हों 
सोलहबी साल की युवती सी लचक मटक डोलती हो 
कभी शांत तो पल में शरारत भरी हलचल दिखलाती हों 
ऐ नदी!! क्या तभी तुम किसी नारी सी लगती हो

चट्टानों का सीना चिर तुम हसीं वादियों में इठलाती हो
सभी के अरमानो का दिया अपने आँचल में संजोये रखती हो 
जब टूटे संयम का बाँध - सब चूर चूर कर जाती हो 
ऐ नदी!! क्या तभी तुम किसी नारी सी लगती हो

कवि की प्रेरणा बन शब्दों में ढल जाती हो 
प्रेम, विरह या हो तपस्या - सबका साथ निभाती हो 
समर्पण ही हैं सर्बोच्च सत्य - ये बतलाती हो 
ऐ नदी!! क्या तभी तुम किसी नारी सी लगती हो 

- शुक्ला बनिक 



Thursday 10 November 2016

Two Lines

कुछ  इस  तरह  दोहराया ज़िन्दगी ने ये किस्सा हर बार
तुमको  मंजूर थी दोस्ती और हमने चाहा प्यार

- शुक्ला बनिक