Saturday, 14 May 2016

अच्छे दिन



ऎसा अक़सर मेरे साथ क्युँ होता है ?
सोचा कुछ था पर हो कुछ और जाता हैं 
माँ बाप ने बड़े चाव् से मुझे स्कूल भेजा 
अपने सारे अरमानो का गला घोंट बेवजह 
हम फिर भी न समझे उनकी यह बलिदान 
बचपन गवां दी बनके यूँ नादान 
जब सोचा अब कुछ काबिल बन जाए 
पढाई ख़त्म कर ली पर अच्छे दिन नहीं आये 
नौकरी मिली तो पर्याप्त धन नहीं मिला 
पैसा मिला तो सही औधा नहीं मिला 
जब मिला सब तो नियत बिगड़ गई 
अपने स्वार्थ की पूर्ति में साड़ी उम्र बीत गई 
आज ज़िंदा हैं पर ज़िंदादिली गवांया   
बस यही कहते रहे के अच्छे दिन नहीं आया 
तो सुन ऐ कबीरा सच्ची ये मन की बात 
है बहुत ज़रूरी तू बाँध ले कसके गाँठ 
समय हैं सबसे बलबान, समय हैं सबसे कठोर 
जो मिले ख़ुशी तुझे आज, तो वाहे फैला के बटोर 
यह बात तुझे यहाँ कोई ना समझाएगा 
अच्छा इंसान बन, अच्छे दिन ज़रूर आएगा 

Copyright: Shukla Banik


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